
सरकारी नौकरी करने वाले लाखों कर्मचारियों के लिए एक बार फिर उम्मीद की किरण जागी है। करीब 19 साल बाद, पुरानी पेंशन योजना (OPS) की वापसी को लेकर गंभीर मंथन शुरू हो गया है। यदि यह योजना फिर से लागू होती है, तो रिटायरमेंट के बाद कर्मचारियों को बिना किसी आर्थिक चिंता के निश्चित मासिक पेंशन मिल सकेगी – एक ऐसी व्यवस्था जो पहले विश्वास और सुरक्षा की पहचान हुआ करती थी।
पुरानी पेंशन योजना क्या है और यह क्यों थी खास?
पुरानी पेंशन योजना के तहत, रिटायरमेंट के बाद कर्मचारी को उसके आखिरी वेतन का लगभग आधा हिस्सा हर महीने पेंशन के रूप में मिलता था। इस योजना में कर्मचारी को अपनी सैलरी से कोई अंशदान नहीं देना पड़ता था – पूरी जिम्मेदारी सरकार की होती थी। यही कारण था कि कर्मचारी निश्चिंत होकर नौकरी करते थे, क्योंकि उन्हें अपने बुढ़ापे की वित्तीय सुरक्षा का पूरा भरोसा था।
नई पेंशन योजना (NPS) क्यों लाई गई?
साल 2004 में केंद्र सरकार ने पुरानी योजना को बंद कर नई पेंशन योजना लागू कर दी। इसमें कर्मचारी और सरकार दोनों को मिलकर एक निश्चित प्रतिशत जमा करना होता है, जो विभिन्न निवेशों में लगाया जाता है। यह योजना निवेश आधारित है, इसलिए इसमें पेंशन की गारंटी नहीं होती। शेयर बाजार में उतार-चढ़ाव का सीधा असर कर्मचारियों की पेंशन पर पड़ता है – जो इसे एक अस्थिर विकल्प बना देता है।
कर्मचारियों की नाराजगी और विरोध के पीछे की वजह
नई पेंशन योजना को लेकर शुरू से ही कर्मचारी संगठनों में असंतोष रहा है। उनका कहना है कि NPS न तो सुरक्षित है और न ही भरोसेमंद। उत्तर प्रदेश के कर्मचारी नेता जेएन तिवारी जैसे कई लोगों ने प्रधानमंत्री को पत्र लिखकर पुरानी योजना को फिर से शुरू करने की मांग उठाई है। उनके अनुसार, कर्मचारियों को अपनी पसंद की पेंशन योजना चुनने का अधिकार मिलना चाहिए।
कुछ राज्यों की पहल और उससे जुड़ी चुनौतियाँ
बढ़ते दबाव के चलते कई राज्य सरकारों ने OPS को दोबारा लागू कर दिया है। हालांकि, यह प्रक्रिया बिल्कुल आसान नहीं रही। NPS के तहत जो पैसे कर्मचारियों ने सालों तक जमा किए थे, उन्हें वापस पाने में तकनीकी अड़चनें सामने आ रही हैं। इससे कर्मचारियों में असमंजस और नाराजगी बनी हुई है।

विकल्प देना ही होगा समाधान
जानकारों की मानें तो 2009 तक केंद्र सरकार कर्मचारियों को OPS और NPS के बीच चयन का विकल्प देती थी। आज जब कर्मचारियों की संख्या और अपेक्षाएं दोनों बढ़ गई हैं, तो यह जरूरी हो गया है कि उन्हें फिर से वह विकल्प दिया जाए। ठीक वैसे ही जैसे प्राइवेट सेक्टर में NPS को एक ऑप्शन के रूप में लागू किया गया है।
क्या योगी सरकार से मिल सकती है राहत?
जेएन तिवारी की हालिया मुलाकात उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से भी काफी चर्चा में रही। उन्होंने पुरानी पेंशन योजना पर अपनी बात रखी, और सीएम योगी ने भी बताया कि केंद्र सरकार ने इस मुद्दे पर एक कमेटी गठित कर दी है। सूत्रों की मानें तो केंद्र भी अब OPS की तरफ झुकाव दिखा रहा है, जो एक बड़ा संकेत माना जा रहा है।
NPS को पूरी तरह हटाना क्या संभव है?
वर्तमान में NPS का दायरा इतना बड़ा हो चुका है कि इसे पूरी तरह हटाना सरकार के लिए आसान नहीं होगा। लेकिन जब कर्मचारी लगातार आवाज उठा रहे हैं, तो यह अनदेखा करना भी मुश्किल है। किसी को भी जबरदस्ती किसी स्कीम में शामिल करना सही नहीं है – हर कर्मचारी को अपनी सुविधा और सुरक्षा के अनुसार योजना चुनने की आज़ादी मिलनी चाहिए।
राजनीतिक असर और आने वाले चुनाव
कई विशेषज्ञों का मानना है कि अगर OPS को लेकर कर्मचारियों की मांगों को नजरअंदाज किया गया, तो इसका असर चुनावों में दिख सकता है – चाहे वो राज्य स्तर के हों या लोकसभा चुनाव। यही कारण है कि अब सरकार के लिए यह सिर्फ वित्तीय नहीं, बल्कि राजनीतिक मुद्दा भी बन गया है।
OPS लागू होने से मिलेगा क्या लाभ?
अगर OPS फिर से लागू होती है, तो सरकारी कर्मचारियों को रिटायरमेंट के बाद सुनिश्चित मासिक पेंशन मिलेगी – जो उनके आखिरी वेतन का लगभग 50% हो सकती है। सबसे बड़ी बात ये है कि इसमें कोई निवेश या जोखिम नहीं होता। इससे न केवल उनका भविष्य सुरक्षित रहेगा, बल्कि वर्तमान सैलरी में कटौती भी नहीं होगी, जिससे आर्थिक संतुलन बेहतर होगा।
आगे क्या होगा?
फिलहाल, OPS की वापसी को लेकर केंद्र सरकार की समिति की रिपोर्ट का इंतजार किया जा रहा है। हालांकि कर्मचारियों के लगातार बढ़ते दबाव और राजनीतिक समीकरणों को देखते हुए उम्मीद है कि जल्द ही इस मुद्दे पर कोई ठोस फैसला लिया जा सकता है। तब तक सभी की नजरें सरकार की अगली घोषणा पर टिकी रहेंगी।
